Wednesday, September 19, 2018

अविचल धैर्य की महिमा _आचार्य पं मनोज पाण्डेय

🚩🙏 ऊँ अविचल धैर्य की महिमा

*एक बार एक तपस्वी जंगल में तप कर रहा था। नारद जी उधर से निकले तो उसने साष्टांग प्रणाम किया* और पूछा- मुनिवर कहाँ जा रहे हैं? नारदजी ने कहा-विष्णुलोक को भगवान के दर्शन करने जा रहे हैं। *तपस्वी ने कहा-एक प्रश्न मेरा भी पूछते आइए कि- मुझे उनके दर्शन कब तक होंगे?*

*नारद जी विष्णुलोक पहुँचे* तो उनने उस *तपस्वी का भी प्रश्न पूछा-भगवान ने कहा-84 लाख योनियों में अभी 18 बार* उसे और चक्कर लगाने पड़ेंगे तब कही मेरे दर्शन होंगे। वापिस लौटने पर नारदजी ने यही उत्तर उस तपस्वी को सुना दिया।

*तपस्वी अधीर नहीं हुआ। समय की उसे जल्दी न थी। इतना आश्वासन उसे पर्याप्त लगा कि भगवान के दर्शन देर सबेर में उसे होंगे अवश्य!* इससे उसे बड़ी प्रसन्नता हुईं और दूने उत्साह के साथ अपनी तपस्या में लग गया। *उसकी इस अविचल निष्ठा और धैर्य को देखकर भगवान बड़े प्रसन्न हुये और उनने तुरन्त ही उस तपस्वी को दर्शन दे दिये।* कुछ दिन बाद नारद जी उधर से फिर निकले तो भक्त ने कहा- *मुझे तो आपके जाने के दूसरे दिन ही दर्शन हो गये थे। इस पर नारद जी बहुत दुखी हुये* और विष्णु भगवान के पास जाकर शिकायत की कि *आपने मुझसे कहा इनको लंबी अवधि में दर्शन होंगे और आपने तुरन्त ही दर्शन देकर मुझे झूठा बनाया।*

भगवान ने कहा- *नारद जिसकी निष्ठा अविचल है जिसमें असीम धैर्य है उसके तो मैं सदा ही समीप हूँ। देर तो उन्हें लगती है तो सघन पल में उतावली करते है।* उस भक्त के प्रश्न में उतावली का आभास देखकर मैंने लंबी अवधि बताई थी पर जब देखा कि *वह तो बहुत ही धैर्य वान है तो उतना विलंब लगाने की आवश्यकता न समझ और तुरन्त दर्शन दे दिये।*
        🚩🙏 जय माता दी  🚩🙏
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