जिस प्रेम से मेरी तरफ देखते हो, उसी प्रेम से अपनी तरफ देखो। जिस श्रद्धा से मेरी तरफ देखते हो, उसी श्रद्धा से अपनी तरफ देखो। फिर जरा भी फासला न रह जाएगा। फिर तुम्हें अपने भीतर भी वही दिखाई पड़ेगा, जो मेरे भीतर दिखाई पड़ता है।
प्रेम की आंख चाहिए। असली बात श्रद्धापूर्ण हृदय, प्रेम से भरी आंख है। लेकिन इस संसार में सबसे कठिन बात यही है, अपने को ही प्रेम से देखना। दूसरे के प्रति प्रेम रखना कठिन है, इतना कठिन नहीं। दूसरे के प्रति श्रद्धा रखना बहुत कठिन है, पर फिर भी असंभव नहीं है। सध जाता है, सधते—सधते सध जाता है। लेकिन अपनी तरफ श्रद्धा के भाव से देखना बड़ी असंभव—सी बात लगती है। लेकिन जिस दिन वह असंभव घटता है, उसी दिन जीवन में कुछ घटा, ऐसा जानना।
आंखें दूसरे को तो देख पाती हैं, क्योंकि दूसरा बाहर है; स्वयं को नहीं देख पाती, क्योंकि स्वयं तो आंखों के भीतर छिपा है। वहां जाने के लिए तो आंख बंद करनी होगी। दूसरे की तरफ जाने के लिए तो यात्रा करनी पड़ती है जीवन—ऊर्जा को। अपने तक आने के लिए सब यात्रा छोड़नी पड़ेगी, शांत और थिर होकर बैठ जाना पड़ेगा। उस थिरता के क्षण में ही स्वयं से मिलन होगा।
बहुत कठिन है, लेकिन असंभव नहीं; घटता है। और यह मैं तुमसे कहूंगा, जब तक वह तुम्हारे भीतर न घट जाए तब तक तुम कितनी ही श्रद्धा करो किसी पर, उससे सहारा भला मिले, उससे मंजिल पूरी न होगी। अपने पर श्रद्धा लानी होगी।
कठिनाई और भी बढ़ गई है, क्योंकि तुम्हारे तथाकथित धर्मगुरुओं ने, तुम्हारे महात्माओं ने, तुम्हें स्वयं की निंदा सिखाई है; तुम्हें स्वयं का अपमान सिखाया है, तुम्हें स्वयं को ही तिरस्कृत करने की भावना सिखाई है। उन्होंने तुमसे यही कहा है कि तुम महापापी हो, चोर हो, बेईमान हो, झूठे हो, अंधेरे में हो, हिंसक हो। तुम्हारे भीतर उन्होंने नरक को चित्रित किया है। अग्नि की लपटें ही लपटें बताई हैं। तुम्हारे भीतर स्वर्ग के राज्य की तरफ तो उन्होंने इशारा नहीं किया। कभी कोई जीसस, कभी कोई बुद्ध, महावीर इशारा करता है, लेकिन वह आवाज खो जाती है लाखों महात्माओं के शोरगुल में।
महात्मा का सारा धंधा इस बात पर निर्भर है कि तुम्हें निंदित करे। तुम जितने निंदित हो जाते हो, जितने भयभीत हो जाते हो, जितने घबड़ा जाते हो, उतने ही तुम महात्मा की शरण में चले जाते हो। तुम जितने अपराध— भाव से भर जाते हो, उतना ही तुम्हारा शोषण किया जा सकता है।
मंदिर—मस्जिदों में, गुरुद्वारों में झुके हुए लोग बड़ी गहन अपराध की भावना से झुके हैं। प्रार्थनाएं कर रहे हैं कि हम पतित हैं, तुम पतितपावन हो!
ध्यान रखना, अगर तुम पतित हो, तो पतितपावन से कभी तुम्हारा मिलन न होगा। क्योंकि समान से ही समान मिलता है। तुम अगर पतित ही हो, तो मिलन संभव नहीं है। तुम्हें भी पतितपावन होना पड़ेगा। परमात्मा से मिलना हो, तो परमात्मा की उदभावना तुम्हें अपने भीतर भी करनी होगी। वही तुम्हारी पात्रता बनेगी। जिस दिन तुम भी इस उदघोष से भरोगे कि मैं भी परमात्मा हूं......।
यह कोई अहंकार नहीं है। यह सीधा सत्य है। तुम भी परमात्मा हो, उसी के अंश हो। छोड़ो निंदा, छोड़ो अपने प्रति दूषित—कलुषित भाव। भूलो नरक को।
जैसे—जैसे तुम अपने प्रति सदभाव से भरोगे, अपने को स्वीकार करोगे, वैसे—वैसे तुम पाओगे कि स्वर्ग के राज्य के द्वार खुलने लगे। और बड़ा चमत्कार तो यह है कि जितना तुम अपने को पतित समझोगे, उतने पतित होते जाओगे। क्योंकि तुम्हारे विचार ही तो तुम्हारे जीवन को निर्मित करते हैं। तुम जितना अपने को बुरा समझोगे, उतना अपने आचरण में अपने को बुरा तुम्हें सिद्ध करना भी पड़ेगा, नहीं तो खुद की ही समझ गलत होने लगेगी।
तुम अपने को बेईमान समझते हो, इससे और बेईमानी पैदा होती है। और बेईमानी पैदा होती है, तुम अपने को और बेईमान समझते हो। उससे और बेईमानी पैदा होती है।
मनसविद कहते हैं कि अगर पापी व्यक्ति को भी, बुरे व्यक्ति को भी सारे लोग यही याद दिलाएं कि तू पापी नहीं है; उसके चारों तरफ की हवा उससे एक ही बात कहे कि तू परमात्मा है, पुण्यात्मा है। अगर पाप हो भी गया है, तो वह कृत्य है एक, वह तेरा स्वभाव नहीं है। वह भूल है, वह तेरा कोई स्वरूप नहीं है।
हजार काम आदमी कर रहा है, एक भूल हो जाती है, इससे कोई पापी नहीं हो जाता! कभी कोई आदमी बीमार हो जाता है, इसलिए बीमारी तुम्हारा स्वभाव नहीं हो जाती, कि कभी बुखार आ गया था, तो तुम्हारा बुखार स्वभाव हो गया! कि अब तुम जब भी मंदिर में जाओ तब भगवान को कहो कि मैं बुखार हूं और तुम महा चिकित्सक हो!
यह बकवास बंद करो। कभी आदमी बुखार से भर जाता है, कभी क्रोध से भी भर जाता है, पर ये दुर्घटनाएं हैं, ये तुम्हारा स्वभाव नहीं हैं। ये !भूल—चूक हैं ज्यादा से ज्यादा, अपराध इसमें कुछ भी नहीं है। कमजोरियां होंगी, पाप कुछ भी नहीं है। इन्हें गौण करो।
यह ब्लाॅग सारण जिला ब्राह्मण महासभा के सौजन्य से समस्त सनातन धर्मावलम्बियों के लिए समर्पित है।
Tuesday, September 18, 2018
पूर्वाग्रह
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आचार्य पं श्री गजाधर उपाध्याय
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Being arrogant, even loses in the field of knowledge- ------------------------------------------------ Knowledge grows in kn...
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जो सूर्यास्त के देश हैं, उनमें विज्ञान मिला है, वैज्ञानिक मिला है। जो सूर्योदय के देश ह...
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