Wednesday, September 19, 2018

रमैनी

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रमैनी और बीजक
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रमैनी या रमनिनी 'बीजक' की प्रस्तावना है। कबीर ने रमैनी द्वारा हिंदू एवं मुस्लिम दोनों को समान रूप से धार्मिक शिक्षा दी है और अपने विचारों को निर्भयतापूर्वक समाज के समक्ष रखा है। रमैनी में चौरासी पद हैं। प्रत्येक पद में स्वतंत्र विचार हैं। प्रथम रमैनी में सृष्टि की उत्पत्ति का वर्णन, समष्टि और व्यष्टि भाव से किया गया है। द्वितीय रमैनी में व्यष्टि रूप से जीव तथा माया की त्रिगुणात्मक फाँस में जीवात्माओं के फँस जाने का वर्णन किया गया है। तीसरी एवं चौथी रमैनी में अनेक वाणियों एवं कर्मों के जाल का वर्णन किया गया है। पंचम पद में द्वंद्व के फंदे को मुक्ति का बाधक बतलाया गया है और छठे में आत्मा के असंग ज्ञान से माया के संग के परित्याग का विवेचन किया गया है। सातवें से लेकर दसवें तक वेदांत की चर्चा के साथ माया के बंधन और उनसे छूटने के मार्ग पर प्रकाश डाला गया है।

रमैनी में चार स्थलों पर जीवों को चेतावनी दी गई हैं। सर्वप्रथम ग्यारहवें पद में जीवों को संबोधित किया गया है कि भोगों की वासना, उन्हें माया के बंधनों में फाँस देती है। इक्कीसवे एवं बाइसवें पदों में यह चेतावनी दी गई है कि इस अपार दु:खमय जगत्‌ में केवल दु:ख ही दु:ख है। अत: विवेक धारण करना आवश्यक है। चौवालीसवें पद में तीसरी बार कबीर ने जीवों को बतलाया है कि सतसंग से सन्मार्ग मिलता है। अंतिम याने, चौरासीवें पद में चौथी बार उद्बोधन किया है कि मनुष्य स्वयं सचेत नहीं होता अत: स्वप्रमय संसार से मुक्ति नहीं पाता। यदि वह स्वयं चेते तो वह एक हो जाए।

रमैनी के शेष पदों में भ्रमजाल, अभिमान, अज्ञान, अविद्या, कर्मबंधन, संसारी गुरुओं की कहानी, जीव, ईश्वर और मन का ताना बाना और उसकी दशा, जैन आदि मत की समीक्षा, शास्त्रव्यवसायी पंडितों की दशा, ज्ञान की आवश्यकता, संसार की अनित्यता, माया ओर मन की प्रबलता, हठयोगियों की दशा, मनुष्य जाति का निरूपण, शैव हठयोगियों तथा वाचक ब्रह्मज्ञानियों की दशा, अवतारवाद, मायाफाँस और उसका विनाश, कालपुरुष और जीव का स्वरूप, विवेक की आवश्यकता, संसारवृक्ष की विलक्षणता एवं क्षत्रिय कर्तव्यविचार का आध्यात्मिक विवेचन किया गया है। कायागढ़ जीतने पर अधिक बल दिया गया है।

कबीर के बीजक ग्रंथ का वास्तविक सार एवं आध्यात्मिक रहस्य रमैनी में मिलता है जो प्राय: चौपाई छंद में हैं।

बीजक

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आचार्य पं श्री गजाधर उपाध्याय