"इच्छामृत्युंजयी"-- दोनों महान आत्मा-- गिद्धराज जटायु और कौरवश्रेष्ठ भीष्मदेव जी से जटायु थे सायद पहिली 'समाजवादी' मगर भीष्म जी थे सिर्फ 'राजतन्त्रवादी' वसुलपरस्त सत्यव्रत। इसलिए दोनों महान आत्मा बैकुंठगामियों से गिद्धराज जी को 'भगवतशांति' मगर पितामह जी को 'ऐहिककष्ट' नसीब हुई थी।।
इस से शिक्षा मिलता है कि 'राजतन्त्रसेवा' से बढ़कर 'समाजसेवा' हि ज्यादा महत्वपूर्ण है, जिस 'तत्व' को परोक्ष में दोनों महाऋषि वाल्मीकि जी और व्यास जी ने दो वसुलपरस्तों को लेकर दो अलग युग मे दर्शाएं है।।
दुर्भाग्य से आज हम बहुधा भुलजाते हैं हमारा इंसानियत की सेवा- अभिप्रेत कर्तव्यकर्म, जो गिद्ध होकर भी नहीं भुला था अध्यात्मपरस्त निःस्वार्थी जटायु। तो हम निर्मल शांति प्राप्ति के लिए "मानव सेवा में माधव सेवा"-- ये सत्य को अपने अंदर से क्यों उत्थित न करेंगे !!! भाईचार जिन्दावाद।।।
हरिबोल।। ॐ शांतिः।।
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